भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आप कह लीजिये हज़रत, के ज़माना बदला / अंबर खरबंदा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
आप कह लीजिये हज़रत, के ज़माना बदला
हमने किरदार ही बदला है न लहजा बदला

हाँ, ख़राशें भी रहीं अपनी जगह ख़ूब मगर
आईना बदला न हमने कभी चेहरा बदला

मुश्किलों ने तो बहुत सोच के काँटे बोए
हमने रोके न क़दम और न रस्ता बदला

वो भी रिश्तों में नया ढूँढ रहा है मतलब
हमने जिसके लिए हर एक से रिश्ता बदला

तेरे होने का न एहसास ही मिट जाए कहीं
बस यही सोच के कमरे का न नक़्शा बदला