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आप यूँ ना आया भी करिये / शक्ति बारैठ

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आप,
यूँ ना आया भी करिये
गुमनाम से होकर
यूँ ना जाया भी करिये
लोग कहते है, में झूंट लिखता हूँ
और लिखता क्या हूँ
घसीटता हूँ शब्दों को
बिना बात, बे अर्थ, बे-तर्क,
समझते हो ग़र इन सब बातों को
तो हुज़ूर
दूसरों को ज़रा बताया भी करिये।
शर्म आती होगी जब वो पढ़ते होंगे
की किस बात का ग़म है जो
अक़्सर छापने लगता हूँ,
लगता होगा की बड़प्पन दिखाता हूं
कभी चाँद, कभी तारे कभी सड़क
कभी उबले अंडे आलू छुआरे
कभी मेहबूब कभी आशिक़
रश्क इज्ज़त आदमी औरत
तराजु तकिये ताज़िये मशान बर्तन भांडे
माशूक महोब्बत आरजुएं
अल्हड़ लफंडरपन दारू
साधक साकी सिगरेट शराब
ना जाने क्या क्या, और क्यों,
ना समझ हो तो किसे फ़िक्र है
समझदार हो हुज़ूर
तो कभी जताया भी तो करिये।
और क्या कहूँ
ये कोई कविता तो नहीं,
मगर दिमाग से बाहर निकालकर
दिल को भी
सताया तो करिये।