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आपां रै पांती री छिंया / नीरज दइया
Kavita Kosh से
म्हैं धापग्यो
ठूंठ कैवै-
ओ कांई जीवणो है
लाओ थारो
कुंवाड़ो।
म्हैं ओळखूं
अरदास मांयली
लाचारी।
ठूंठ जोड़ै
हजार हाथ
मुगती री चावना मांय।
ठूंठ रा हाथ
डरै है
जड़ां सूं
अर म्हारा हाथ
कुंवाड़ै सूं।
ठूंठ रै मांय
हणै ई म्हनै दीसै
एक लीलोछम रूंख
अर आपां रै पांती री छींया
खेलै लुकमींचणी
रुतां साथै
छिंया- आपां रै पांती री
आपां रै पांती री-
छींया।