आम / पतझड़ / श्रीउमेश
आमोॅ के दिन ऐलोॅ छै झुकलोॅ छै डार ढिकोला सें।
मूड़ी नीचें करलें जेना दुलहिन उतरै डोला सें॥
हर डारी में लुथनी आम सिनुरिया केहनोॅ सोहै छै।
तेकरा पर कोयली के कूकें दुनियाँ भर केॅ मोहै छै॥
बिसुआ में कुच्चा, चटनी घुमनी के देखोॅ खूब बहार।
पोदीना, अदरख, जीरा सें होतै चटनी के सिंगार॥
आम जुऐला पर देखोॅ सहरी-जल्ला होलै तैयार।
टुटतै आम घरे-घर जैतै, काटी केॅ बनतै आँचार॥
टपकेॅ लागलै आम टपाटप, तोड़ै में लगलोॅ छै जोर।
पालोॅ पर के आमोॅ केॅ देखोॅ तेॅ भेलै लाल हिंगोर॥
दादी; भौजी; चाची देखोॅ पारी रहली छै आमोट।
पानी में या दूधोॅ मंे धोरी केॅ खैतै चाटी होंठ॥
दुखिया सुखिया लोगोॅ के, पसु-पंछी के छै रोजे भोज।
आमोॅ के पकथै देखोॅ बिरनी के जेना जुटलै फौज॥
सिधुआ केॅ बिरती काटलेॅ छै, रघुआँ सूंग उखाड़ै छै।
‘बिरनी बिरनी तों बड़ी रानी’ मंतर पढ़ि झाड़ै छै॥