भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आमीन / गुलज़ार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ख्याल ,सांस नज़र,सोच खोलकर दे दो
लबों से बोल उतारो,जुबां से आवाज़ें
हथेलियों से लकीरें उतारकर दे दो
हाँ, दे दो अपनी 'खुदी' भी की 'खुद' नहीं हो तुम
उतारों रूह से ये जिस्म का हसीं गहना
उठो दुआ से तो 'आमीन' कहके रूह दे दो