आमीनिया / सरोज कुमार
प्रकृति नहीं माँगती क्षमा
न गिनाती है उपकार
नहीं देती कोई आदेश!
न रखती है अपेक्षा!
कोई महाशक्ति हो
तो बनी रहे
अपने मोहल्ले की,
काँपें, थराएँ, दुम हिलाएँ
उसके दोस्त और दुश्मन
अपनी बला से!
धरती काँपी
किसी के डर से नहीं
अपने ही स्पन्दन से,
आर्मिनिया ढह गया
हमारी औकात कह गया!
प्रकृति कहीं भी
दुहरा सकती है आर्मिनिया
बिना किसी पूर्व सूचना के,
हमारे सूचना यंत्रों की
जादुई आँखों के बावजूद!
आसमान में पतंग उड़ा लेने का
मतलब
यह नहीं है, कि आंधियाँ
हमारे कहने में है
और आसमान कब्जे में!
प्रयोगशाला में नाथे गए
नथुनों के अलावा
असंख्य नथुने हैं प्रकृति के
और वह कहीं भी
घुसा सकती है सींग
अपने कौतुक में!
इसे अपनी पराजय समझकर
निराश होने की
जरूरत नहीं,:
यह प्रकृति की
विजय भी नहीं है,!
खेल यह प्रकृति का,
और प्रकृति अपने खिलौनों से
खिलौनों द्वारा बनाए नियमों से
नहीं खेलती!