गृह सचिव विशाल कन् भेजलन
दूत के हाथ तुरत समाद।
एगो विदेशी बन बहरूपिआ
लगएलक गृह-युद्ध सन आग॥11॥
लोग लोग के काट गिरबइअ
युद्ध ठनल हए जात-परजात।
जाति-भेद के चर्चा कहियो न
बिना बात अब करइअ घात॥12॥
राज-ज्योतिष बतएलक कि उ हए
मग्गह मंत्री पंडित वर्षकार।
बिना अस्त्र हमलाकर बज्जी पर
पबइअ खूब जय-जयकार॥13॥
दिन बिताबे क्षत्री कन मंत्री
ब्राह्मण कन खिचरी उ खाए।
शुद्र लग फुसफुसा कऽ, वैश्य के उ
गहुँम के भाव महङ बताए॥14॥
नाक सिकोरे ब्राह्मण शुद्र पर
धमकी देबे न परह्म बेद।
बनिया सके लूटे क्षत्री सअ
बुरल भाग, केन्ना बच्चत् देश॥15॥
शूद्र सहायक न रहल कृषि में
ब्राह्मण के न कहुँ मिलल ठाँव।
क्षत्री सेना छोड़ भगइअ अब
बैश्य बसएलक बनियाँ गाँव॥16॥
नारी-नर में अब भेद कराकऽ
फइलाबे जहर इ बर्षकार।
अनपर्ह के सङ पर्हलो-लिक्खल सऽ
अम्बा विरुद्ध उठाबे अवाज॥17॥
नारी के दमसएलन लोग अब
टप निकलअ न तु लक्ष्मण रेख।
घरे में रहअ चूल्हा फुकइत
अंशुमन-रावण ले न देख॥18॥
तीर-तलवार बनइअ जेतना
अब खरचा होइअ घर में उ।
नारी कटइअ तऽ मरद मरइअ
बर्षकारो हँसइअ पल में उ॥19॥
सेना में भरती रुक गेल
देश पर इ बरका अघात।
अदमी-जनावर सब भूख मरइअ
कइसन चाल उ चलल अजात॥20॥