आम्रपाली / सेवा / भाग 1 / ज्वाला सांध्यपुष्प
आएल दाहर खतम हो गेल आई अब
छोरकअ गेल खूब हियाँ हाहाकार के।
घबइल कहउँ कुहरइअ अखनी तक
मरल परल सरइअ उ बेकार के॥
गोर कट्टल-केक्करो हाथ कट्टल हबे ई
देखकअ दहाएल दिल कलाकार के।
गिरल फूल के चुन-चुन जोरे जुबती उ
चिन्हू हिरदय अइसन मालाकर के॥1॥
नगर बहु उ कइसन वैशाली के देखू
तोरलक नाता देश के लेल पाएल से।
कएलक सोआगत कसकअ उ सुन्दरी
मग्गह महारथि जे जे हियाँ आएल से॥
आन इ देश के बचाबे खातिर अम्रपाली
परबाहो न कएलक हअ उ जान के।
जखनी जरूरत रहल जइसन जान
जोर लेलक नाता उ अखनी घाएल से॥2॥
अन्हर बहईअ अइसन अकास में
कसरत करइअ उ गाछ तुजार में
कुत्ता कोंकिआईअ तऽ गिद्दर भुकइअ
लड़हू लगइअ लहास के बजार में।
बना-बनाकअ अब टोली पुरुष-नारी के
दउरल अम्रपाली गङा के किन्छार में।
स्वयं सेवी संस्था सन संचालित हए सब
घबइल सैनिक के उपचार में॥3॥
कोनहारा में लहास जरइअ कखनी से
विष्षाइन महकइअ इ ओक्कर धुआँ।
महकत कुख्यात अइसने अजात के
खेल्लक उ सम्राट खूब अइसने जुआ॥
भरल-परल हए ओक्कर कीर्ति अखनी
धरती पर लहास के रूप में देखऽ।
कप्फन देबे, नारी अम्रपाली घट्टे पर
प्रियदर्शिनी ऊ फाड़-फाड़ अप्पन नुआँ॥4॥
राज बैध के सङ इ अम्रपाली दिनभर
घबईल सऽ के सेवा करइअ हाली-हाली।
खटिआ पर लाद-लादकअ लाबे, परल
कुहरइत योद्धा के एक्कर सब्भे आली॥
शिविर भर गेल घबइल से, उजड़ल
खोता देख कुहरइअ अब कोइली।
चेतक होएल अचेत, बज्रनाभि के देख
छटपट करे राजा, काने खूब वैशाली॥5॥
लउटल लश्कर समेत, बिशाल बैशाली
हियाँ रह गेल खाली, इ अम्रपाली नारी।
लहास जरे उ कोनहारा, पर सबतर
अन्दर हए आग-सेवा के कहे न नारी॥
आ गेल चिट्ठी, बुलाबा आएल राजभवन से
तइयो न जाएत, उ कर्म के पुजारिन।
धर्म के तराजू पर, तउलत तखनी
कर्म अम्रपाली के, बीस परत बड् भारी॥6॥
योद्धा सब्भे चङा भेल, गङा नहा लउटल
विरान घाट कोनहारा खाली उ छउनी।
किला अकेला देखइत, रहल जाइत उ
मन-मसोस कऽ लउटल सब रमणी॥
डेग-डेग पर सोआगत, होइअ हिनका
सबतर लग्गल तोरण द्वार अखनी।
नारी आ अगारी, अखनी इ गीत गबइअ।
आरती अब उतारे, खूब ओक्कर रानी॥7॥
रानी उलहना, देइत हथ खूब हिनका-
‘तोहर पएरा ताक थक्कल इ नएना।
बरी देर कएलअ आबे में हे सुकुमारी
बीतल छटपटाइत तोरा ला ई रएना॥
रहअ कहाँ तु छिटइत अँकुरी प्रेम के
कहाँ बँटइत रहअ तु सेबा के बएना।
बोलअ, बताबअ जएबअ न तुहू अब
छोड़कअ तु हम्मरा, हे हम्मर मएना॥8॥