भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आया जाड़े का मौसम / पद्माकर शर्मा 'मैथिल'
Kavita Kosh से
सन-सन सन-सन चले पवन
कोहरे से ढक गया गगन
बर्फ़ीली चादर ओढ़े
आया जाड़े का मौसम
चाय-रेवड़ी मूँगफली
अब तो लगती बहुत भली
आइसक्रीम ना भाती है
देख कंप कँपी आती है
या तो गजर का हलुआ हो
या हों पकोरे गरम-गरम
आया जाड़े का मौसम
स्वेटर के ऊपर स्वेटर
स्वेटर के नीचे स्वेटर
उस पर पहना कोट बड़ा
फिर भी नहीं है कोई असर
कम्बल पर कम्बल ओढ़े
और रज़ाई नरम-नरम
आया जाड़े का मौसम
खिली चमकती धूप मिले
और क्रिकेट का दौर चले
रन पर रन बन जाएँगे
हम सेंचुरी जमाएँगे
छक्के पर छक्के होंगे
चौके होंगे कम से कम
आया जाड़े का मौसम