भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आया मनसुख आज गाँव जब / राजपाल सिंह गुलिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आया मनसुख आज गाँव जब,
लेने बाँट बटाई।
सम्बंधों के बीच हुई तब,
खुलकर हाथापाई।

छुटके की जब सुनी बात तो,
झड़े कान के जाले।
जाकर बसे शहर में हमको,
करके राम हवाले।
बोलो किस मुख से कह दें हम,
तुमको अपना भाई।

कैसे कहे सभा में बड़का,
माँग रहा ना भिक्षा।
खेत बिके ना तभी शहर में,
खींच रहा हूँ रिक्शा।
खा जाते हैं आमद सारी,
चूल्हा और पढ़ाई।

रामू काका की चाहत थी,
बंधी रहे बुहारी।
इसीलिए तो कह दी कर लो,
खेवट न्यारी-न्यारी।
स्याने लोग करें रिश्तों की,
ऐसे भी तुरपाई