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आये दिन उमड़ते / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
आए दिन उमड़ते
झंझा - झकोरों ने
जर्जर भले कर दिया
शरीर
पर अदम्य है
अन्तर्जिजीविषा
आलोकित है मन
आत्मिक उजास से
पाँवो को मिलती है
गति
संकल्प की शक्ति से
अटूट है
यात्रा का नैरन्तर्य