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आरक्षण / कविता कानन / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
कब छोड़ेगा हमें
ये आरक्षण का भूत
कब सीखेंगे हम
बिना आरक्षण की
लाठी के सहारे
चलना ?
आरक्षण की
यह लाठी
बना रही है
हमें आलसी
कायर और अकर्मण्य
कुंठित कर रही है
हमारी बुद्धि ।
नहीं चाहिये हमे
ऐसा आरक्षण
जो बना दे
हमें अपाहिज
इतना अधिक
कि चल ही न सकें
बिना किसी सहारे के ।
करना चाहते हो
यदि हमारा
कल्याण
तो दो हमें सुविधाएँ ,
आगे बढ़ने के अवसर
झूठी राजनीति
के लिये
मत करो
हमारा इस्तेमाल
मोहरा बना कर
मत करो
गन्दी राजनीति।