भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आर्थिक सुधार / निशान्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरेक सिर चढै
रोज
सरकारी, गैर सरकारी
अर विदेसी करजो
मंदो है हर कारोबार
लीलो चरण री खुल्ली छूट है
इजगर-सी कम्पनियां नै अर
मालदारां नै
जुआनी अठै री
सड़ै बठी बेकार
का मरै जैर खाय’र ।