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आर्य! / अर्चना लार्क
Kavita Kosh से
मृत्यु आने वाली है
पिता बच्चा हो गया है
और बेटी माँ
अपने स्तन से दूध पिलाती बेटी
ढहते बरगद को थाम लेती है
खड़कती पत्तियाँ शान्त स्थिर
मृत्यु आ गई है
चेहरे खिले हैं
आगे कई क़दम एक हुए हैं
दो शरीर एक जान
होंठ एकमेक
ख़त्म होती साँस के बीच
साँस भरती ये ज़िन्दा तस्वीरें
क्या अब भी मुँह चिढ़ाती हैं !
श्रेष्ठ !
मृत्यु से पहले कितनी बार
शर्म से मरते हो ?
कहो, मृत्यु को अब कैसे देखते हो !