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आवाज़ नहीं होती / विजय गुप्त
Kavita Kosh से
एक पत्ता
टूटता है
प्रकृति की विराटता में
आवाज़ नहीं होती ।
एक नदी
गुम होती है
रेत की अनन्तता में
आवाज़ नहीं होती ।
पानी
जम जाता है
हिमांक की अतलता में
आवाज़ नहीं होती ।
जीवन की
अकथ कथा
खुलती है
चुप की आकुलता में
आवाज़ नहीं होती ।