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आश्चर्य / प्रकाश
Kavita Kosh से
नदी बहती थी इससे बड़ा आश्चर्य क्या था
वृक्ष झूमते थे उन्मत्त
यह कम नहीं था अवाक होने के लिए
आकाश से जल नहीं, वही बरसता था
भीगने से इन्कार कर
चकित होने का अवसर कैसे चूक जाता
चूक जाता तो आश्चर्य-- यह पोंगरी
बाँसुरी कैसे बन पाती!