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आश्चर्यानुभूति / मोहन सपरा
Kavita Kosh से
1.
रोटी के आसपास
मंडराती है
भूख / दिन-रात ।
2.
यह
ऊब और खीज की दस्तक है
फिर भी ख़ामोश है
चट्टान-सा सीना
सपनों/ इरादों
की खूँखार नदी
सब कुछ
स्याह कर देने वाली
आँखें ।
3.
एक इश्तिहार
अख़बार में
रोटी दी
सरकार ने ।
4.
अलबता
मैं तैयार हूँ
एकदम तैयार;
शब्द
मेरे हाथों में
पहुँच चुके । अलबता ......
5.
क्या हो गया -
आदमी को क्या हो गया
अपने ही देश में
जन्में, पले और बड़े हुए
आदमी को क्या हो गया ?
कैसे वह
देशद्रोही हो गया ?