भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आश्वासन / राजकमल चौधरी
Kavita Kosh से
बताह अछि पवन
चारूकात पसरल अछि करुणाक भय-क्रन्दन
थरथर सभ फूल-पात
भयातुर अछि प्रकृति-गात
की हयत, कतय लय जायत ई बिहाड़ि, अछि किछ ने ज्ञात
बताह अछि उनचासो पवन
कँपइए नँगटे महावन
तइयो, एहि अन्धड़मे
जीवनक पथ बीहड़मे
दुविधाक झोंक, असुविधाक झाड़, विविधा झाँखड़मे
होइए ई विश्वास
होइए आत्मामे एतबा आभास
जय जायत सभ किछ शान्त
विद्रोहक उपरान्त
हर्षे उत्फुल्ल होयत जे अछि एखन क्लान्त
बिहुँसत नवजीवन
सुकुसुमकलिकाक वस्त्रमे सलाजेँ मुस्कायत महावन
देखइ छी, नवनिर्माणमे असंख्य जन लागल छथि
देखइ छी, गाम घरक लोक सभ जागल छथि
तइँ, होइए आश्वासन
जे नन्दनकाननहुँ सँ बेसी सुन्दर बनत अपन महावन