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आषाढ़ / लीलाधर जगूड़ी
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					यह आषाढ़ जो तुमने मां के साथ रोपा था
हमारे खेतों में
घुटनों तक उठ गया है
अगले इतवार तक फूल फूलेंगे
कार्तिक पकेगा
हमारा हँसिया झुकने से पहले
हर पौधा तुम्हारी तरह झुका हुआ होगा
उसी तरह जिस तरह झुक कर
तुमने आषाढ़ रोपा था  
	
	