भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आषाढ़ मास घटा घन गरजेत / भोजपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
आषाढ़ मास घटा घन गरजेत, गरजत ठनकत वो छन में
चिहुँकि-चिहुँकि धनि चहुं ओर चितवे, बइठि के सोच करे मन में।
आवे, ए नंदलाल बेहाल दरस के, जिअले के ह धिरिकार एहि तन के
हाँ रे, जहिया से तेजि गइले बेनीमाधो, तहिया से आगि लगे एहि तन में।।१।।
सावन सइयाँ छएल मुसुकानी, प्रीति कइले ओही कुबरी से
ए नंदलाल बेहाल दरस के, जिअले के ह धिरिकार एहि तन के
जहिया से तेञि गइले बेनीमाधो, तहिया से आगि लगे एहि तन में।।२।।
भादोहीं ऐ सखि, भएली भेआवन, भरी गइले नदी-नार-थल जल
से कोइली जो होइतीं बने-बन ढ़ूंढ़तीं, ताल सूखे बिरिनावन के,
ए नंदलाल बेहाल दरस के, जिअले के ह धिरिकार एहि तन के
जहिया से तेजि गइले बेनीमाधो, तहिया से आगि लगे एहि तन में।।३।।
आसिन कुँअर खबरियो ना जाने, पतियो ना आवे ओही मधुबन से
ऐ नंदलाल बेहाल दरस के, जियले के ह धिरिकार एहि तन के
जहिया से तेजि गइले बेनीमाधो, तहिया से आगि लगे एहि तन में।।४।।