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आस / मनमीत सोनी
Kavita Kosh से
वो भूलणो चावै
अबार-अबार कटयै
आपरै कनखै नैं
अर लूटणो चावै
एक नूंवों कनखो
वीं री बात और है
पण
म्हैं नीं छोडी है आस
तन्नैं फेरूं पाणैं री
तन्नैं फेरूँ पा ई लेस्यूं म्हैं...
कनखो नीं
कविता होगी है इब थूं।