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आस को रोकना / वीरेंद्र मिश्र

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आस को रोकना
पीड़ा के नगर-द्वारों पर
      खड़े पहरा देना
अश्रु की राह में
आए अगर सपन कोई
      उसे ठुकरा देना
हाथ से छूट पड़ी जल में किसी गागर ने
      डूबते वक़्त कहा --
गीत जो शेष रहे फूल में शबनम की तरह
      उसे बिखरा देना
तीर्थ सागर का करे ओस अगर मरुथल में
      उसे दफ़ना देना ।