भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आस जोगन / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आस जब जोगन हो जाए।
कण्टकपथ यौवन हो जाए।
जहर मौन हो- मन पीता है;
पीड़ामय जीवन हो जाए।

पलक-द्वार जब वह न खोले।
पीर जिया की अश्रु न बोले।
तब यह समझो घट रीता है;
जीवन इसमें रस न घोले।

कठिन हो जब मन समझाना।
विकल जी की प्यास बुझाना।
मृत्यु सरल, कठिन है जीवन;
क्या साँस का आना-जाना?