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आसमान बड़ी दूर है / विद्याधर द्विवेदी 'विज्ञ'
Kavita Kosh से
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धरती पर आग लगी – पंछी मजबूर है
क्योंकि आसमान बड़ी दूर है!
लपटों में नीड़ जला
आग ने धुआँ उगला
पंछी दृग बंद किये
आकुल मन उड़ निकला
सिंधु किरन में डूबी – और साँझ हो गई
आँसू बन बरस रहा पंख का गरूरा है
क्योंकि आसमान बड़ी दूर है!
बोझिल तम से अंबर
शंकित उर का गह्वर
जाने किस देश में
गिरेगा गति का लंगर
काँप रहे प्राण आज पीपल के पात से
कंठ करुण कम्पन के स्वर में भरपूर है
क्योंकि आसमान बड़ी दूर है!
उड़ उड़ जुगनू हारे
कब बन पाए तारे
अपने मन का पंछी
किस बल पर उड़ता रे,
प्रश्न एक पवन के प्रमाद में मुखर हुआ
पंछी को धरती पर जलना मंजूर है।
क्योंकि आसमान बड़ी दूर है!