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आसमान से ऊपर का बाग़ / नीरज नीर
Kavita Kosh से
आसमान से ऊपर,
है एक सुन्दर बाग़।
जहाँ रहती हैं परियाँ,
नाजुक मुलायम
ऊन के गोले सी।
खिलते हैं सुवासित
सुन्दर फूल।
वहाँ बहती है एक नदी,
जिसमे परियाँ करती है कलोल,
उडाती है एक दुसरे पर छीटें,
जिससे होती है धरती पर
हल्की बारिश लेकिन
धरती रह जाती है प्यासी.
जब कभी नदी तोड़ती है तटबंध
आ जाती धरती पर बाढ़।
और सब कुछ हो जाता तबाह।
उस बाग़ में लग जाएगी आग।
एकलव्य का कटा हुआ अंगूठा
जुड़ गया है वापस।
आदिवासी गाँव का एक लड़का
छोड़ेगा अग्निवाण।
जल जाएगा आसमान से ऊपर का बाग़।
अब आदिवासियों के गाँव में
नाचेगी परियाँ,
खिलेंगे महकते फूल,
बहेगी एक सुन्दर नदी।