भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आसमानों को / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आसमानों को

फुनगियों पर उठाए

कैसे उन्मुक्त हो रहे है वृक्ष

आएँ

बटाएँ इनका भार

और मुक्त होकर हँसें

हँसें

ठहाके लगाएँ

हँसें

कि आसमान

कुछ और ऊपर उठ जाए।