आसाढ़ की सुबह / मोहन अम्बर
मौसम पर आज नमी है, आसाढ़ी सुबह रमी है,
बतला फिर कौन कमी है जो तुझ पर प्राण गमी है।
उजलाई पूरब नदिया मुंह धोया कृषक गगन ने,
बगिया की नीेंद उड़ाई मालिन-सी किरण-किरण ने,
भंवरों ने गीत उगेरे, तितली ने मारे फेरे
देती है गंध गवाही फूलों पर ओस जमी है,
बतला फिर कौन कमी है जो तुझ पर प्राण गमी है।
श्रम के चरणों से ब्याही पगडण्डी दुल्हन जैसी,
कड़वी जो नीम निबोली ख़ुशबू में चन्दन जैसी,
अलसी-अलसी तरूणाई, कुछ उमगाई शरमाई,
कोयल को बहुत चिढ़ा कर शिशुओं की कुहू थमी है,
बतला फिर कौन कमी है जो तुझ पर प्राण गमी है।
सूरज की प्यार-चपत से उषा के गाल अरूण है,
साधों के पूजा-जल से कदली के पेड़ तरूण है,
पनघट पर चहल-पहल है, धरती अब रूप महल है,
खुश है मलयज मजदूरिन तन उसका आज श्रमी है,
बतला फिर कौन कमी है जो तुझ पर प्राण गमी है।
चिड़ियों ने प्रश्न उठाया तू क्यों खोया-खोया है,
क्या चाँद घटन के दुख से निशि भर जग कर रोया है,
यह तो पगले गति-क्रम है, तुझ पर हावी कुछ भ्रम है,
हर संघर्षी जीवन को विष बनता रहा अमी है,
बतला फिर कौन कमी है जो तुझ पर प्राण गमी है।