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आस्था - 80 / हरबिन्दर सिंह गिल

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जब दो भाई लड़ते हैं
यह माँ है, जो सबसे ज्यादा दुःखी होती है।
भाइयों को अपने बदन पर चोट आती है
यह माँ है, जिसका दिल जख्मी होता है।

उनको अपने शारीर पर पीड़ा होती है
माँ की आत्मा रोती है।

जब दो भाई अपना हक माँगते हैं
माँ उनको बांटकर खाने के लिये कहती है।
वो अपनी बात साबित करना चाहते हैं
माँ आपसी बातचीत के लिये कहती है।

भाई छोर तक जाना चाहते हैं
माँ उत्पत्ति से पहले ही बुझा देना चाहती है।

वो अपनी आने वाली पीढ़ी में रुचि लेते हैं
माँ पूर्वजों का मोल बोध कराना चाहती है।

भाई आंगन में दीवार को अपनी विजय मानते हैं
माँ उसकी नीव में अपना प्यार चूर होते देखती है
इसी तरह, मनुष्य को यह महसूस करना चाहिये
जब वह आणविक आग में जिंदा जलेगा
वह मानवता ही होगी
जो एक वस्तु नहीं है परंतु हमारी माँ है
सबसे ज्यादा कष्ट भोगेगी
उसकी आत्मा अणु की गर्मी में भुन जायेगी
और पूरा ब्रह्मांड
उसकी चीख से हिलकर रह जायेगा।