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आस्वाद / गोबिन्द प्रसाद
Kavita Kosh से
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कोई भी दिन
मेरे और तुम्हारे बीच
छलकती हुई
उस चाय की तरह
आ जाएगा
जो एक ही
केतली से ढकने के बावजूद
दो अलग अलग स्वादों में
बदल जाएगा
विदाई के क्षणों की छाया में
कैसे रंग जाते हैं चीज़ों के रुख़
स्वाद बदल लेती हैं
चीज़ें भी अपना!
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