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आहट बसन्त की / नीरजा हेमेन्द्र
Kavita Kosh से
ओ मेरे प्रिय!
एक दिन जब तुम आओगे
मेरे लिए बसन्त ले कर
हाँ! मेरा बसन्त लेकर
जब तुम्हारी साँसे मेरे शरीर के
पोर-पोर में
वासन्ती हवा की तरह
स्पर्श करती हुई
सिहरन भर देंगी
तुम्हारी आवाज मेरी कल्पनाओं में
असंख्य फूल खिला देगी
ओस की बूँदों की तरह
तुम्हारी छुअन मुझे कँपकपाहटों से भर देंगी
ओ मेरे प्रियतम्! मैं....!
मैं तुम्हारी झील के समान
गहरी आँखों में
जिनमें तार-तार अनछुई
चाँदनी भरी है
डूब जाऊँगी
और फिर सुनूँगी
बसन्त के आने की आहट।