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इंतजार / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
अनगिनत अमरुद लगे हैं
हमारे घरवाले पेड़ पर
वे लटके हुए हैं डालियों पर
हरे तोते की तरह
भीतर से जिनके
एक मीठी-सी गन्ध
लगी है अब मुह खोलने
शायद दो-तीन दिनों में
पक जायेंगे ये अच्छी तरह से
और बहने लगेगा स्वाद
हमारी जीभों पर
हम बेसब्री से कर रहे हैं
उस दिन का इन्तजार
और आस-पास के पक्षी
उस पर चोंच मारने का ।