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इंद्रधनुष / आरती कुमारी

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तुम्हे देखते ही
आंखें हो जाती हैं जामुनी
तैरने लगते हैं उनमें गुलाबी सपने
होंठ हो जाते है सुर्ख लाल
और हो जाती है
दिल की बगिया हरी भरी
ख्वाबों के नीले आकाश में
उड़ने लगते हैं
अरमानों के रंग -बिरंग पतंग
आतुर हो उठता है भींगने को
तुम्हारे प्रीत की बारिश में मेरा अंतस..
तय कर लेता है पल भर में
इंद्रधनुषी झूले पे चढ़
'मैं' और 'तुम' की दूरी को मेरा मन
और मिल जाता है तुमसे ..ऐसे..
जैसे...दूर.. क्षितिज पे कहीं..
मिलते हैं ..धरती और गगन..