भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इंधन / इला प्रसाद
Kavita Kosh से
यादों के उपलों में
अब एक भी कच्चा उपला नहीं
जो जले देर तक
और धुआँ देता रहे
कि आकांक्षाओं की नाक में पानी
और आँखों में जलन हो
गले में ख़राश
और थोड़ी देर के लिए ही सही
वे खामोश हो जाएं
वक़्त की आग ने
सब जलाकर राख कर दिया
अब नया इंधन जुटाना ही पड़ेगा
ज़िंदगी के लिए