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इंसां के अन्दर के डर / ज़ाहिद अबरोल
Kavita Kosh से
इंसां के अंदर के डर
मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर
धर्म शिकस्त-ए-फिक-ओ-नज़र<ref>सोच और दृष्टि(ध्यान) की हार</ref>
अपनी हर उलझन से मफ़र<ref>वह स्थान जहां भाग कर छिपा जा सके</ref>
लाखों इंसां बेघर हैं
एक ख़ुदा के लाखों घर
औरों में जो ढूंढता है
पहले ख़ुद में पैदा कर
धर्म बड़ा या मुल्क बड़ा
तोल रहे हैं दानिशवर<ref>बुद्धिमान</ref>
मज़हब-ओ-मुल्क<ref>धर्म और देश</ref>यकम<ref>प्रथम</ref>, दोयम<ref>द्वित्तीय</ref>
इंसां तीसरे नंबर पर
“ज़ाहिद” दिल का यक़ीं ही तो है
बाक़ी सब है फ़रेब-ए-नज़र<ref> दृष्टि भ्रम</ref>
शब्दार्थ
<references/>