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इक छोटा सा ख़्वाब / रंजना भाटिया
Kavita Kosh से
रात भर मेह टप-टप टपकता रहा
बूँद-बूँद तुम याद आते रहे
एक गीला सा ख़वाब मेरी आँखो में चलता रहा
काँपती रही मैं एक सूखे पत्ते की तरह
तेरे आगोश कि गर्मी पाने को दिल मचलता रहा
चाँद भी छिप गया कही बदली में जा के
मेरे दिल में तुझे पाने का सपना पलता रहा
था कुछ यह गीली रात का आलम
कि तुम साथ थे मेरे हर पल
फिर भी ना जाने क्यूं तुम्हे यह दिल तलाश करता रहा !!