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इच्छाएँ / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
जब इच्छाएं छोटी-छोटी हों
कितना आसान हो जाता है उन्हें पूरा करना
मैं जल्दी ही उन्हें छू सकता हूं
इसलिए अत्यधिक उत्साह है मुझमें
दूरी इतनी कम है कि निराश नहीं हो सकते हम
मेरी घड़ी को कितना कम चलना पड़ेगा
पैरों को विश्राम की जरूरत नहीं
दिनों को अंगुलियों पर गिन सकता हूं
एक घूंट में सब कुछ पी गए
और तृप्ति ठीक हमारे सामने है।