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इच्छ्या-२ / दुष्यन्त जोशी

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थूं
जिण दिन
सोच लियौ
कै थूं जाणै
सो' कीं

उणी दिन
हुज्यासी
थारै खातमै री
सरूआत

पण
थूं
करम रै
बदळाव सारू
ना मारी
आपरै
मन री इच्छ्या।