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इज़्ज़तपुरम्-2 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
अभावों में
जीवन
कहाँ तक
खुले आँख
नाकाम कोशिशें
उम्मीदें गर्दिश में
सूरज बेवक्त चढ़ा
ताप की सीढ़ियाँ
सामने बस बेबसी
दो हाथ के बीच
फासले बड़े हों
एक हाथ
चॉद और सितारों
से ऊपर
पर, दूसरा
रोटी के ख़्वाब
से भी दूर