भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इज़्ज़तपुरम्-7 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
शिथिल परम्पराओं
को तोड़ना
क्या पाप है?
ग्रंथियों से
बाहर निकलना
अभिशाप है?
संस्कृति के
टूटने का ख़तरा
बार -बार
करमू के
जमे ख़ून को
कचोटता है
क्या अब
बेटी के
नाज़ुक कंधों पर
दायित्वों का
बोझ हो?
क्या वह
वहन कर पायेगी?
क्या वह
अजनबियों के
सम्मुख फैलाये
कटोरे जैसे हाथ
कैसे कल पीले होगे?