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इण घर रा रैवणिया / कुंदन माली

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इण घर में रैवणिया रै विचार सूं
देस री हालत
चिलम भरतां सुधर जावे
जे सै लोग
हिलमिल जावै

परवार-समाज री चिंतावां
लारै छूट जावै
जे सै लोग
अेक दूजै पे भरोसो दिखावै

चारूं म्हेर सुख-संमदरियो लैरावै
जै सै लोग
अेकण सागै
काम माथै जुट जावै

मानखा रै ओलै-दोलै़ घेरो घालती
भूख-बीमारी-बेकारी सै भाग छूटै
जे लोग
एक रोटी ने पण
बांट-चूंट खावै

पाड़ोसियां रै ख्याल सूं
इण घर रा रैवणिया लोग
इण भांत भला मिनख है क’
अेक-दूजै ने आपस में
फूटी आंख्यां नीं भावै !