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इण रो कण-कण थरमोपोली / शिवराज भारतीय

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कितरा ही सिंह-पुरख सायर
इण माटी में बलिदान हुया
आओ पूजां इण माटी नै
सिर कटया जठै जुझार लड्या

जिण माटी में जलमण सारू
देवां में होड मची भारी
इण सुरग-सरीखी मरू भोम नै
निंवण कर दुनिया सारी

जिण माटी रा दरसण करणै
परभाती सूरज नित आवै
निज किरणां सूं सोनै जेडै़
धोरां नै चम-चम चमकावै

अलमस्त अठै रो जन-जीवण
गीतां-रीतां में खूब रमै
जद बातां चालै वीरां री
सुणता जाओ ऐ नही थमै

अस्सी-अस्सी घावां नै ले
बै लड्या सदा ना कदै हट्या
बैरी कांप्या हा दाकळ सूं
बै राणा सांगा अठै तप्या

राजा रो पूत बचावण नै
निज सुत नै झट बलिदान कर्यो
मो‘ममता भूली बिसराई
पन्ना धा ऐड़ो त्याग करयो
इण देस रा घणकरां राजां नै
जद अकबर चरणां झुका लिया
बै वीर प्रतापी महाराणा
निज मान संभाळ्या सदा लड्या

जद खिलजी गढ़ में जा पूग्यो
अर मार-काट ही मची घणी
धू-धू करती अगनी में जा
बै पदमण राण्या सती बणी

संसारी बंधन तोड़ दिया
सुख-सुविधा सगळी बिसराई
गढ़-मै‘ल बण्या सतसंगी मठ
गिरधर पायो मीरा बाई
है मिनख अठै रा सेर-बब्बर
माटी सारू झेलै गोळी
दुसमीं-सामी विकराळ जबर
इणरो कण-कण थरमोपोली।