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इतनी कड़वी, कि पी नहीं जाती / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
इतनी कड़वी, कि पी नहीं जाती
और तौबा भी की नहीं जाती,
साँस लेना भी जुर्म है गोया
ज़िंदगी है, कि जी नहीं जाती,
एक ठहरा हुआ सफ़र हूँ मैं
इक सड़क जो कहीं नहीं जाती,
रात भर दिल मेरा जलाती है
चाँदनी अपने घर नहीं जाती,
कोई तसवीर नहीं, तू भी नहीं
बस तेरी याद है, नहीं जाती।