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इतनी तेज़ हवाएँ दे / विनय मिश्र
Kavita Kosh से
इतनी तेज़ हवाएँ दे ।
पीपल जगे दुआएँ दे ।
शापों का संत्रास मिटे,
दे कुछ और कथाएँ दे ।
शब्दों का परिहास न हो,
ऐसी परिभाषाएँ दे ।
बीत गया सो बीत गया,
वर्तमान आशाएँ दे ।
मरण जले और हाथ मले,
जीवन की समिधाएँ दे ।
तू कवि है, क्या दूँ तुझको,
मैंने कहा ऋचाएँ दे ।