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इतनी रात गए / शकुन्त माथुर
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हौले - हौले की पद-चाप
दबी पवन के साथ सुनाई पड़ती
तन्द्रिल अलकों का अटकाव
सुलझना फिर - फिर साफ़ सुनाई पड़ता
चुप सोई इस नई चमेली के नीचे
नूपुर किसके मन्द लजीले बज उठते हैं
इतनी रात गए
गहरी ख़ुशबू केसर की
बढ़ी हुई मेंहदी के नीचे फैल रही है
पीला पड़कर सूरज नीचे उतर रहा है
या सहमा-सा चाँद उतरकर
उलझ गया है
फलों के झुरमुट में।