भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इतने गहरे हैं जब जुबानी में / श्याम कश्यप बेचैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इतने गहरे हैं जब जुबानी में
क्यों उतरते नहीं हैं पानी में

ताकि कुछ तो लगे हक़ीकत-सी
और कुछ जोड़िए कहानी में

हमको हरगिज़ समझ नहीं सकते
आप रहते हैं बदगुमानी में

सच नहीं बोलते तो क्या होता
फँस गए हम ग़लतबयानी में

तंगदस्ती ने इस क़दर मारा
हो ना पाए जवाँ जवानी में

आए पानी को बाँधने लेकिन
आप भी बह गए रवानी में