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इन-उनकी / नईम
Kavita Kosh से
रहते आए
जनम जनम से
अमलदारियों में इन-उनकी
रंग, रूप, खुशबू की खातिर
खिले क्यारियों में इन-उनकी।
हाल पूछते हो क्या अपने?
आते नहीं नींद में सपने
रातें रहीं बदलती करवट
बेकरारियों में इन-उनकी।
अपने करे धरे पर पानी
फेर रहे हैं वो लासानी
नाचा किए विवश हो होकर,
हम नचारियों में इन-उनकी।
बिना पोस्टर के विज्ञापित
बिकने को हैं हम अभिशापित
दबे हुए हैं जाने कब से
हम बुखारियों में इन-उनकी।