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इनके कानों में / जीवनानंद दास

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तारों की ओर देख —
हृदय में छिपाए हुए पीड़ा को
लिख-लिख कर कितनी ही कविताएँ
चल गए दुनिया से
जाने कितने युवक !

आधी ही बात सुन मूर्ख अभिमान में,
करती रहीं अनसुनी पृथ्वी की सुन्दरियाँ;
पीतल और सोने की इन सब पुतलियों
के बहरे बन्द कानों में, फिर भी
उँडेल कर कितने ही अमर शब्द
चले गए जाने कितने युवक !
तारों की ओर देख — हृदय में छिपाए
हुए मर्म और पीड़ा को ।

यह कविता ’महापृथिवी’ संग्रह से)