इनसानी चेहरों की ख़ूबसूरती / निकअलाय ज़बअलोत्स्की / अनिल जनविजय
कुछ चेहरे होते हैं ऐसे, जैसे विशाल, भव्य सिंहद्वार
जहाँ बड़े-बड़े भी नज़र आते हैं — तुच्छ और निस्सार
और कुछ चेहरे लगते हैं ऐसे, जैसे ग़रीब की मड़ैया
कलेजा उबले मुँह को आए, औ’ बड़ी आँत भूखी, भैय्या
कुछ चेहरे होते हैं ठण्डे, ज्यों एकदम मरे हुए,
सलाखों के पीछे किसी काल-कोठरी में पड़े हुए ।
कुछ अन्य चेहरे लगते हैं जैसे कोई ऊँची मीनार,
जिसमें कोई नहीं रहता है, न देखे खिड़की के बाहर ।
कभी देखी थी मैंने भैया, वहाँ एक नन्ही झोपड़ी
भद्दी और बदसूरत थी वो, जैसे कंगाल फूटी खोपड़ी
पर उसकी खिड़की से होकर बह रही थी वसंती हवा
नवजीवन की वाहक थी जो, करती थी सबको युवा
सच कहूँ तो शानदार ये दुनिया, जैसे जादू की पुड़िया
हर्ष भरे गीतों का संगम, सब चेहरे लगें चहकती चिड़िया
सूरज की तरह चमके सब चेहरे जैसे सुर-गंगा के स्वर
धुन बज रही है कोई ऐसी जो देवलोक से आई उतर
1955
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
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लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
НИКОЛАЙ ЗАБОЛОЦКИЙ
О красоте человеческих лиц
Есть лица, подобные пышным порталам,
Где всюду великое чудится в малом.
Есть лица — подобия жалких лачуг,
Где варится печень и мокнет сычуг.
Иные холодные, мертвые лица
Закрыты решетками, словно темница.
Другие — как башни, в которых давно
Никто не живет и не смотрит в окно.
Но малую хижинку знал я когда-то,
Была неказиста она, небогата,
Зато из окошка ее на меня
Струилось дыханье весеннего дня.
Поистине мир и велик и чудесен!
Есть лица — подобья ликующих песен.
Из этих, как солнце, сияющих нот
Составлена песня небесных высот.
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1955 г.