इन्दर स्वरूप दत्त नादां की याद में / कांतिमोहन 'सोज़'
(यह ग़ज़ल मोहतरिम दोस्त और उर्दू के जाने-माने शायर इन्दर स्वरूप दत्त नादां की याद में जिन्हें यह पसन्द थी)
इस रात की क़िस्मत में सहर है कि नहीं है।
कुछ दूर सही शम्स का घर है कि नहीं है॥
पहली-सी नज़ाकत है नमक है न अदा है
कूचे में कोई आईनागर है कि नहीं है।
हम कहते थे कुश्तों<ref>शहीद,आशिक</ref> से कभी ज़िद नहीं अच्छी
अब देख हथेली पे क़मर है कि नहीं है।
सैलाब में आए कि न आए किसे ग़म है
दरिया अभी मायल-ब-सफ़र<ref>यात्रा का इच्छुक</ref> है कि नहीं है।
बातें न बनाओ हमें इतना ही बताओ
ऊँची तो है वो शाख़ समर<ref>फल</ref> है कि नहीं है।
रो-रो के उसे हमने दुखी दिल तो दिखाया
अब देखिए उस बुत पे असर है कि नहीं है।
तुम सोज़ के बारे में हमें ये तो बताओ
सर देके सँवरने का हुनर है कि नहीं है॥
2002-2017