भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में / जोश मलीहाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में
इबादत तो नहीं है इक तरह की वो तिजारत<ref>व्यापार</ref> है

जो डर के नार-ए-दोज़ख़<ref>जहन्नुम की आग</ref> से ख़ुदा का नाम लेते हैं
इबादत क्या वो ख़ाली बुज़दिलाना एक ख़िदमत है

मगर जब शुक्र-ए-ने'मत में जबीं झुकती है बन्दे की
वो सच्ची बन्दगी है इक शरीफ़ाना इत'अत<ref>समर्पण</ref> है

कुचल दे हसरतों को बेनियाज़-ए-मुद्दा<ref>किसी के लक्ष्य की तरफ ध्यान न दे</ref> हो जा
ख़ुदी को झाड़ दे दामन से मर्द-ए-बाख़ुदा<ref>खुदा का भक्त</ref> हो जा

उठा लेती हैं लहरें तहनशीं<ref>पानी में डूबता</ref> होता है जब कोई
उभरना है तो ग़र्क़-ए-बह्र-ए-फ़ना<ref>मौत के गहरे समुन्दर में डूब</ref> हो जा

शब्दार्थ
<references/>